सावन और काशी विश्वनाथ मंदिर का अद्भुत संगम
सावन का महीना शिव भक्तों के लिए सबसे पवित्र और प्रिय माना जाता है। पूरे भारत में शिव मंदिरों में विशेष पूजा होती है, परंतु काशी विश्वनाथ मंदिर का महत्त्व इस दौरान सबसे अधिक होता है।
बनारस (वाराणसी) में स्थित यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
काशी विश्वनाथ मंदिर की पौराणिक कथा
कहा जाता है कि जब सृष्टि की रचना हुई, तब भगवान शिव ने सबसे पहले काशी को अपनी लीला भूमि बनाया। उन्होंने इसे “मोक्ष नगरी” का दर्जा दिया। स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि जो भी काशी में देह त्याग करता है, उसे शिव स्वयं मोक्ष प्रदान करते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर की स्थापना का उल्लेख कई पुराणों में है। माना जाता है कि माता पार्वती ने शिव से प्रार्थना की थी कि एक स्थायी निवास बनाएं, जहां वे दोनों सदा वास करें, और तब काशी की स्थापना हुई।
मंदिर का इतिहास और निर्माण
वर्तमान मंदिर का निर्माण 1780 में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। इससे पहले यह मंदिर कई बार विदेशी आक्रांताओं द्वारा तोड़ा गया था, विशेष रूप से औरंगज़ेब ने इसे ध्वस्त कर वहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवा दी थी।
इसके बाद भी लोगों की आस्था कम नहीं हुई और उन्होंने फिर से इस मंदिर को भव्य रूप दिया। मंदिर का शिखर सोने से मढ़ा हुआ है जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने भेंट किया था। यह भारत के सबसे अमूल्य मंदिरों में गिना जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास क्या है खास?
1. ज्ञानवापी कुआं: मंदिर परिसर के पास स्थित इस कुएं को लेकर कई धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यताएं हैं।
2. मणिकर्णिका घाट: यहीं पर हिंदू मान्यताओं के अनुसार अंतिम संस्कार के बाद आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।
3. दशाश्वमेध घाट: गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध घाट, जहां हर शाम दिव्य आरती होती है।

4. गंगा नदी का दर्शन: मंदिर से कुछ ही दूरी पर बहती गंगा माँ का दर्शन आत्मिक शांति प्रदान करता है।
5. काशी कॉरिडोर (विश्वनाथ धाम परियोजना): हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित इस कॉरिडोर ने मंदिर परिसर को भव्य और सुविधाजनक बना दिया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के चार प्रमुख द्वार (चारों दिशाओं से प्रवेश):
काशी विश्वनाथ मंदिर के चार प्रमुख द्वार (दरवाज़े) धार्मिक, ऐतिहासिक और वास्तुशिल्प दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। ये द्वार मंदिर के अलग-अलग दिशाओं से प्रवेश को दर्शाते हैं और हर द्वार का अपना प्रतीकात्मक महत्व है।

1️⃣ पूर्व द्वार (Purva Dwar / Eastern Gate):
यह द्वार मुख्य प्रवेश द्वार माना जाता है।
मंदिर के पुराने स्वरूप में, पूर्व दिशा को शुभ और प्राथमिक माना जाता है।
यहाँ से श्रद्धालु गंगा स्नान करके सीधे दर्शन के लिए आते थे।
आस्था के अनुसार, यह द्वार “उदय और आरंभ” का प्रतीक है।
2️⃣ पश्चिम द्वार (Paschim Dwar / Western Gate):
इसे अब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Dham Corridor) का हिस्सा बना दिया गया है।
इस द्वार को अधिक विशाल और सुगम बनाया गया है ताकि दर्शनार्थियों को भीड़ में दिक्कत न हो।
पश्चिम दिशा मोक्ष और अस्त होने का प्रतीक मानी जाती है, अतः यह द्वार आत्मिक विश्राम को दर्शाता है।

3️⃣ उत्तर द्वार (Uttar Dwar / Northern Gate):
यह द्वार मंदिर के गहरे हिस्से से जुड़ा हुआ है।
उत्तर दिशा ज्ञान और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
इस द्वार से केवल विशेष मौकों पर या परिक्रमा हेतु प्रवेश होता है।
4️⃣ दक्षिण द्वार (Dakshin Dwar / Southern Gate):
यह द्वार कई पुराने मंदिरों और गलियों से जुड़ता है।
दक्षिण दिशा को कर्म और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।
यह द्वार पारंपरिक परिक्रमा मार्ग का हिस्सा है।
ध्यान देने योग्य बातें:
आज के समय में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना के तहत मंदिर का स्वरूप और पहुंच-मार्ग काफी व्यवस्थित और भव्य कर दिया गया है।
अब मंदिर परिसर में एक मुख्य प्रवेश द्वार और कई निकास द्वार बनाए गए हैं, लेकिन पारंपरिक दृष्टिकोण से चार दिशाओं के चार द्वारों का महत्त्व अभी भी बना हुआ है।
सावन में काशी दर्शन का महत्व
सावन के महीने में लाखों शिव भक्त कांवड़ यात्रा करके गंगा जल लाते हैं और उसे काशी विश्वनाथ पर अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सावन में शिव को जल चढ़ाना विशेष पुण्य फल प्रदान करता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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बनारस (वाराणसी) क्यों है इतना प्रसिद्ध?
शिक्षा और ज्ञान का केंद्र: प्राचीन काल से ही बनारस को शिक्षा, संगीत और संस्कृति की नगरी माना गया है। यहां काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) जैसे प्रसिद्ध संस्थान हैं।
घाट और गंगा आरती: बनारस के घाटों पर रोज़ शाम की गंगा आरती विश्व प्रसिद्ध है, जो पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करती है।
साहित्य और संगीत: तुलसीदास, कबीर और प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार यहीं से जुड़े हैं।
पारंपरिक खानपान और बनारसी पान: बनारसी साड़ी, बनारसी पान और मिठाइयाँ (जैसे लौंगलता, रबड़ी, ठंडाई) यहाँ की पहचान हैं।
बनारस कैसे पहुंचें? (How to Reach Varanasi)
काशी (वाराणसी) भारत के लगभग हर हिस्से से सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ आना बेहद आसान और सुविधाजनक है।
🚆 रेल मार्ग (By Train):
बनारस में दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं:
1. वाराणसी जंक्शन (Varanasi Junction – BSB): यह मुख्य रेलवे स्टेशन है, जिसे बनारस स्टेशन भी कहा जाता है। भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से ट्रेनें यहाँ आती हैं।
2. पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन (Mughalsarai – DDU): यह स्टेशन वाराणसी से लगभग 15 किमी दूर है और एक बड़ा रेल जंक्शन है।
स्टेशन से काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए ऑटो, टैक्सी और ई-रिक्शा आसानी से मिल जाते हैं।
सड़क मार्ग (By Bus):
वाराणसी का Roadways Bus Stand (Cantt Road, Lahartara) उत्तर प्रदेश परिवहन निगम (UPSRTC) द्वारा संचालित है।
लखनऊ, पटना, प्रयागराज, गोरखपुर, दिल्ली, और रांची जैसे शहरों से सीधी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
✈️ हवाई मार्ग (By Air):
लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (Varanasi Airport – VNS) वाराणसी से लगभग 25 किमी दूर है।
यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, और कई अंतरराष्ट्रीय शहरों से जुड़ा हुआ है।
एयरपोर्ट से शहर तक टैक्सी, कैब और बस की सुविधा आसानी से उपलब्ध है।
बनारस के प्रसिद्ध खाने (Famous Foods of Varanasi)
बनारस सिर्फ आस्था और संस्कृति के लिए नहीं, बल्कि खाने-पीने के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ की गलियों में आपको हर कोने पर कुछ न कुछ स्वादिष्ट जरूर मिलेगा:
प्रसिद्ध व्यंजन और स्ट्रीट फूड:
1. बनारसी कचौड़ी-सब्जी और जलेबी: सुबह की शुरुआत इसी नाश्ते से होती है।
2. टमाटर चाट: थोड़ी तीखी, थोड़ी मीठी — बनारसी स्वाद का असली नमूना।
3. मलाईयो / निमिष: सर्दियों में मिलने वाली हल्की, झाग जैसी मिठाई, जो मुंह में घुल जाती है।
4. ठंडई (भांग वाली भी): महाशिवरात्रि और होली पर विशेष रूप से प्रसिद्ध।
5. लौंगलता, बनारसी समोसा, गोलगप्पा, चना चाट, दही बड़़ा आदि भी बेहद स्वादिष्ट होते हैं।
बनारसी पान:
बिना पान के बनारस यात्रा अधूरी मानी जाती है। “बनारसी पान” यहाँ की पहचान है। यह सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि एक संस्कृति है।
टिप्स और सुझाव:
बनारस की गलियाँ थोड़ी संकरी हैं, तो पैदल चलने या ई-रिक्शा का इस्तेमाल करना बेहतर होता है।
मंदिर में दर्शन के लिए सुबह जल्दी जाना अच्छा रहता है ताकि भीड़ कम मिले।
सावन में भीड़ ज्यादा होती है, तो ऑनलाइन होटल बुकिंग और यात्रा की प्लानिंग पहले से करें।
काशी केवल एक शहर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। सावन के पवित्र महीने में काशी विश्वनाथ के दर्शन करना जीवन को दिव्यता से भर देता है। यहां का वातावरण, श्रद्धा और परंपरा आज भी वैसी ही जीवंत है जैसे सदियों पहले थी।
काशी आने का सबसे शुभ समय सावन है। अगर आप शिव भक्त हैं या आध्यात्मिकता के खोजी, तो काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन, गंगा आरती में भागीदारी और बनारस के स्वादिष्ट व्यंजन आपके जीवन का अमूल्य अनुभव बन सकते हैं।